गुरु रविदास जी भारत के महान संत, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक थे। वे जाति-व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध थे और पूरी मानवता को समानता, प्रेम, और भक्ति का संदेश दिया। उनका जीवन, शिक्षाएं और रचनाएँ आज भी समाज को प्रेरणा देती हैं।
गुरु रविदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
गुरु रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में (संभावित तिथि 1377 या 1450 ई.) काशी (वर्तमान वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे एक निम्न जाति के परिवार में जन्मे थे, जो उस समय समाज में अछूत माने जाते थे। उनके पिता संतोख दास जूते बनाने का काम करते थे और माता करमा देवी एक धार्मिक महिला थीं।
बाल्यकाल से ही गुरु रविदास आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। वे बचपन में ही साधु-संतों की संगति में रहने लगे और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने लगे। उन्होंने अपने कर्म को ही पूजा माना और जाति-पाति की परवाह किए बिना सभी के लिए समानता की बात की।
गुरु रविदास जी की आध्यात्मिक यात्रा
गुरु रविदास जी को भक्ति मार्ग में विशेष रुचि थी। वे भगवान के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे और अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को जागरूक करते थे। उनकी भक्ति परंपरा संत कबीर, संत नामदेव और संत मीराबाई से प्रभावित थी।
माना जाता है कि मीरा बाई ने गुरु रविदास जी को अपना आध्यात्मिक गुरु माना था। उन्होंने सामाजिक भेदभाव और अंधविश्वासों के विरुद्ध प्रचार किया और लोगों को प्रेम, शांति और एकता का संदेश दिया।
गुरु रविदास जी की शिक्षाएं
गुरु रविदास जी की शिक्षाएं समाज सुधार और आध्यात्मिकता पर आधारित थीं। उनकी प्रमुख शिक्षाएं इस प्रकार हैं:
1. ईश्वर की भक्ति और साधना
गुरु रविदास जी ने कहा कि ईश्वर एक है और उसे भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने मूर्तिपूजा और बाहरी आडंबरों का विरोध किया और प्रेम व सच्चाई को ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया।
2. जाति-पाति का विरोध
वे जातिवाद के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने कहा:
"मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
अर्थात यदि मन शुद्ध है, तो हर स्थान गंगा के समान पवित्र है।
3. समानता और मानवता का संदेश
गुरु रविदास जी ने समानता और भाईचारे पर जोर दिया। वे कहते थे कि सभी मनुष्य एक समान हैं और समाज में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
4. सत्य और अहिंसा
गुरु रविदास जी ने अहिंसा और सत्य को अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि सत्य ही परमात्मा है और सच्चे हृदय से भक्ति करने वाले को ईश्वर अवश्य प्राप्त होते हैं।
गुरु रविदास जी की रचनाएँ
गुरु रविदास जी ने अनेक भक्ति और सामाजिक जागरूकता से जुड़ी रचनाएँ कीं, जिनमें उनके पद, दोहे और भजन शामिल हैं। उनके 40 पद सिखों के पवित्र ग्रंथ "गुरु ग्रंथ साहिब" में भी संकलित हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध दोहे इस प्रकार हैं:
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"ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़े सब सम बसें, रविदास रहे प्रसन्न।।"
???? इसमें वे समाज में समानता और खुशहाली की कामना करते हैं। -
"जात-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।"
???? इसका अर्थ है कि ईश्वर भक्ति के लिए किसी जाति-पाति की आवश्यकता नहीं है।
गुरु रविदास जी और बेगमपुरा की अवधारणा
गुरु रविदास जी ने एक आदर्श समाज की कल्पना की थी जिसे उन्होंने "बेगमपुरा" कहा। यह एक ऐसा स्थान था जहां कोई दुख, गरीबी, भेदभाव और अन्याय नहीं था। उनका यह विचार आज भी सामाजिक समानता और न्याय के लिए प्रेरणा देता है।
गुरु रविदास जयंती और उनकी विरासत
हर साल माघ पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है। इस दिन उनके अनुयायी भजन-कीर्तन, शोभा यात्रा और उनके संदेशों का प्रचार करते हैं। पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और देशभर में उनके अनुयायी विशेष उत्साह से यह पर्व मनाते हैं।
आज भी गुरु रविदास जी की शिक्षाएँ पूरे समाज को एक नई दिशा देने का कार्य कर रही हैं। उनका संदेश न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक सुधार के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
गुरु रविदास जी एक महान संत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भक्ति मार्ग के माध्यम से समाज को जातिवाद और भेदभाव से मुक्त करने का प्रयास किया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें समानता, प्रेम और मानवता की ओर प्रेरित करती हैं।
"एक साथ उठो, एक साथ बढ़ो, एक साथ सोचो और एक साथ कार्य करो!" – गुरु रविदास जी का यही संदेश हमें एकता और प्रेम की ओर ले जाता है।
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